काश
मैं हवा बन जाऊं
उड़ता
रहूं गगन में
मचलता
रहूं ... पेड़ों की झुड़मूठ से
जिधर
मन चाहा ... बहता रहूं
ना
कोई बंदिश ... ना कोई रास्ता
कभी
दोपहर की कड़ी धूप में
शीतल
झोंका बन जाऊं
कभी
अटखेलिया करूं
बादल
के साथ...
तो
कभी झूम - झूम बहूं ... पुरबैया बयार बन कर
तो
कभी चुपके से ...
बच्चों
के साथ हमजोली बन जाऊं
काश
...
काश
..
ऐसा
होता ..
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