Thursday, June 28, 2012

मैं भी कैसा पागल हूं


मैं भी कैसा पागल हूं
कतरे को इक दरिया समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
हर सपने को सच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
तन पर तो उजले कपड़े थे
पर जिनके मन काले थे
उन लोगों को अच्छा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
मेरा फन तो बाजारों में...
बस मिट्टी के मोल बिका
खुद को इतना सस्ता समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
बीच दिलों के वो दूरी थी
तय करना आसान न था
आंखों को इक रस्ता समझा
 मैं भी कैसा पागल हूं
ख्वाबों को इक बच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं

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