मैं भी कैसा पागल हूं
कतरे को इक दरिया समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
हर सपने को सच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
तन पर तो उजले कपड़े थे
पर जिनके मन काले थे
उन लोगों को अच्छा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
मेरा फन तो बाजारों में...
बस मिट्टी के मोल बिका
खुद को इतना सस्ता समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
बीच दिलों के वो दूरी थी
तय करना आसान न था
आंखों को इक रस्ता समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
ख्वाबों को इक बच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
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