Thursday, September 2, 2010

क्या हिममानव का वजूद है ?

कैसा दिखता है हिममानव ?

हिममानव यानि येति को दिखने का जब भी दावा किया जाता हैं .. इसके अस्तित्व पर सवाल उठ खड़े होते हैं .. क्या हिममानव का अस्तित्व है.. और यदि इस बर्फिले इलाके में हिममानव रहता है तो कहां है हिममानव का ठिकाना ... साथ ही इस निर्जन बर्फिले इलाके में वो रहस्यमयी जीव कैसे जिंदा रहता है ... इस तरह के तमाम सवाल सबके जेहन में उठता है.. लेकिन जवाब किसी के पास नहीं है .. दरअसल हिममानव को जब भी देखा गया है .. वो थोड़ी देर के लिए तो दिखाई देता है लेकिवन पल भर में गायब हो जाता है.. . और वो रहस्यमयी जीव कहां बर्फ में गुम में हो जाता है .. ये आज भी रहस्य बना हुआ है ... हिममानव कितना रहस्यमयी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत .. नेपाल और तिब्बत के दुर्गम और निर्जन हिमालय क्षेत्र में सैकड़ों बर्षों से लोग इसे देखते आ रहे हैं.. लेकिन इंसान हिममानव के पहुंच से अब तक हर दूर है ... रहस्यमयी हिममानव यानि येति के अस्तित्व को लेकर तमाम तरह की बातें कही जाती है .. येति को देखने का दावा करने वालों का कहना है .. कि घने बालों वाला ये रहस्यमयी प्राणी सात से नौ फीट लंबा दिखता है ... जबकि इसका वजन तकरीबन दो सौ किलो हो सकता है .. और इसकी खासियत है कि ये इंसान की तरह चलता है ... ऐसा कहा जाता है कि ये रहस्यमयी भीमकाय जीव रात में शिकार करता है .. और दिन में सोता रहता है ..लेकिन येति कभी कभार दिन में भी इंसान को दिख जाता है ... इस रहस्मयी हिम मानव के बारे में जानने की कोशिश लगातार की जा रही है ...लेकिन येति इंसान के पहुंच से आज भी दूर है ... हो सकता है येति की अपनी दुनिया हो .. जहां वो इंसान की पहुंच से दूर बर्फ में सैकड़ों की तादाद में रहता हो .. या ये भी हो सकता है कि हिममानव की तादाद बहुत कम हो .. और वो अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए निर्जल बर्फिले इलाके में छिपने में माहिर हो गया हो ... लेकिन इस तमाम तरह के कयास से परदा तभी उठ पाएगा .. जब हिममानव तक इंसान पहुंच पाएगा ॥


विदेश में भी येति

येति का रहस्य क्या है .. आखिर वो पल भर दिखने के बाद कहां गायब हो जाता है .. ये सवाल हर किसी के लिए पहेली है .. लेकिन इस रहस्मयी प्राणी को हिममानव इस लिए कहा जाता है कि ये ज्यादातर निर्जन बर्फिले इलाके में ही लोगों को दिखता है .. तिब्बत और नेपाल के लोग दो तरह के येति के बारे में बाताते हैं .. जिसमें एक इंसान और बंदर के हैयब्रिड यानि वर्णसंकर की तरह दिखता है ... ये रहस्यमयी हिममानव दो मीटर लंबा और भूरे वालों वाला होता है दूसरे किस्म का येति यानि हिममानव समान्य इंसान से छोटे कद का दिखता है ..जो लाल भूरे बालों वाला होता है ... लेकिन दोनों तरह के हिममानव में सामान्य बात ये पायी जाती है कि .. ये खड़े होकर इंसान की तरह चलते हैं ... और इंसान को चकमा देने में माहिर होते हैं .. ऐसा नहीं है कि हिमामानव का अस्तित्व सिर्फ एशिया में है .. दुनिया भर में हिममानव को सैकड़ो साल से लोग देखने का दावा करते आ रहे हैं .. इस रहस्यमयी प्राणी को दुनिया भर के कई इलाके में अलग अलग नामों से जाना जाता है.... दक्षिण पश्चिमी अमेरिका में हिममानव को बड़े पैरो वाला प्राणी यानि बिग फूट कहा जाता है .. जबकि कनाडा में सास्कयूआच .. अमेजन में मपिंगुअरी... और एशिया में इस रहस्यमयी प्राणी का नाम येति है .. येति शेरपा शब्द है .. जिसमें येह का मतलब चट्टान और तेह का अर्थ जंतु होता है .. यानि चट्टानों का जीव .. शेरपा भाषा में इस रहस्यमयी प्राणी को मिरका .. कांग और मेह- तेह के नाम से भी जाना जाता है ... तिब्बती में इसका अर्थ जादुई प्राणी होता है.. ऐसे में पूरी दुनिया में दिखाई देने वाले इस जादुई प्राणी के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता ... लेकिन हिममानव का कहां है ठिकाना ... ये रहस्य आज भी बरकार है ... हो सकता है हिममानव इंसान के विकास कड़ी हो .. जो बर्फ में हिममानव के रूप में मौजूद हो ... लेकिन इंसान के पास तमाम तरह के अत्याधुनिक साधन होने के बाद भी हिमामानव यानि येति आज भी इंसान की पहुंच से दूर है ..


हिममानव का इतिहास


हिममानव यानि येति दुर्गम बर्फिले इलाके में सदियों से इंसान को दिखता रहा है .लेकिन हिममानव के रहस्य से परदा नहीं उठ पाया है .. आखिर ये हिममानव बर्फिले इलाके में कहां रहता है ... और कहां गायब हो जाता है ... हिममानव के बारे में दुनिया को पहली बार तब पता चला .. जब 1832 में बंगाल के एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में एक पर्वतारोही ने येति के बारे जानकारी दी .. जिसमें ये कहा गया कि उत्तरी नेपाल में ट्रैकिंग के दौरान उसके स्थानीय गाइड ने एक ऐसे प्राणी को देखा ... जो इंसान की तरह दो पैरो पर चल रहा था.. जिसके शरीर पर घने वाल थे .. उस प्राणी को देखते ही वो डर कर भाग गया ... इसके बाद 1889 में एक बार फिर हिमालयी क्षेत्र में पर्वतारोहियों ने बर्फ में ऐसे किसी प्राणी का फूट प्रिंट देखा जो इंसान की तुलना में काफी बड़े था... 20वीं सदी की शुरूआत में भी येति को देखने के मामले तब ज्यादा आने शुरू हुए .. जब पश्चिमी देशों के पर्वतारोहियों ने हिमालय के इस क्षेत्र की चोटियों पर चढ़ने का प्रयास शुरू किया.. .. और फिर 1925 में रॉयल ज्योग्रॉफिकल सोसाइटी के एक फोटोग्राफर ने 15,000 फीट ऊंचाई वाले जेमू ग्लेशियर के पास एक विचित्र प्राणी को देखने की बात कही .. उस फोटोग्राफर ने बताया कि उस विचित्र प्राणी को 200 से 300 गज की दूरी से उसने करीब एक मिनट तक देखा.. जिसकी आकृति ठीक-ठीक इंसान जैसी थी.. वो सीधा खड़े होकर चल रहा था और झाड़ियों के सामने रूक-रूक कर पत्तियां खींच रहा था... बर्फ में वो काला दिख रहा था... इसके बाद 1938 में येति एक बार फिर चर्चा में आया .. विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता के क्यूरेटर एक कैप्टेन ने हिमालय की यात्रा के दौरान देखने का दावा किया . जिसमें कैप्टन ने उसे एक उदार और मददगार प्राणी बताया ... कैप्टन के मुताबिक इस यात्रा के दौरान जब वो बर्फीली ढलान पर फिसल कर घायल हो गये थे.. तब प्रागैतिहासिक मानव जैसे दिखने वाले एक 9 फीट लंबे प्राणी ने उसे मौत के मुंह से बचाया था.. 1942 में भी साइबेरिया के जेल से भागने वाले कुछ कैदियों ने भी हिमालय पार करते हुए विशाल बंदरों जैसे प्राणी को देखने का दावा किया...
लेकिन पहली बार ठोस सबूत तब मिला 1951 में एवरेस्ट चोटी पर चढ़ने का प्रयास करने वाले एक पर्वतारोही ने 19,685 फीट की ऊंचाई पर बर्फ पर बने पदचिन्हों के तस्वीर फोटो लिए .. . जिसका आज भी गहन अध्ययन किया जा रहा है .. बहुत से लोग मानते हैं ये फोटो येति की वास्तविकता का बेहरतीन सबूत हैं लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि ये किसी दूसरे सांसारिक जीव के हैं ..इतना ही नहीं 1953 में सर एडमंड हिलरी और तेनजिंग नोर्गे ने भी एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान बड़े-बड़े पदचिह्न देखने की बात कही.. और फिर 1960 में सर एडमंड हिलेरी के नेतृत्व में एक दल ने येति से जुड़े सबूतों को इक्ट्ठा करने के लिए हिमालय क्षेत्र की यात्रा की.. जिसमें इंफ्रारेड फोटोग्राफी की मदद ली गयी लेकिन 10 महीने वहां रहने के बाद भी इस दल को येति के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाये.. इसके एक दशक बाद 1970 में एक ब्रिटिश पर्वतारोही ने दावा किया कि अन्नपूर्णा चोटी पर चढ़ने के दौरान उन्होंने एक विचित्र प्राणी को देखा और रात में कैम्प के नजदीक विचित्र तरह के चीत्कार सुने.. उनके शेरपा गाइड ने बताया कि ये आवाज येति की है.. सुबह उस कैम्प के नजदीक इंसान जैसे बड़े पदचिन्ह भी देखे.. हाल के दिनों में येति देखने की बात करें तो 1998 में एक अमरीकी पर्वतारोही ने एवरेस्ट से चीन की तरफ से उतरते हुए येति के एक जोड़े को देखने का दावा किया.. उस पर्वतारोही के मुताबिक दोनों के काले फर थे और वे सीधे खड़े होकर चल रहे थे .. 2008 में भी मेघालय में हिममानव यानि येति को देखने का दावा किया गया .. जिसे गारो हिल्स की पहाड़ियों में देखा गया ... लेकिन किसी के ठिक सामने आज तक नहीं आया है.. हो सकता है इस हिममानव का हिमालय के क्षेत्रो में अस्तित्व हो .. जो इंसान के सामने नहीं आना चाहाता हो .. ऐसे में जबतक इंसान हिममानव तक नहीं पहुंच जाता .. ये प्राणी रहस्यमयी बना रहेगा ..

हिममानव रहस्य




बर्फिले निर्जन इलाके में दिखने वाला रहस्यमयी हिममानव यानि येति अब तक दुर्गम इलाके में ही देखा गया है .. लेकिन निर्जन पहाड़ों के बर्फिली चोटियों के बीच वो कहां गायब हो जाता है .. इससे हर कोई अंजान है ... येति का यदि बर्फ में ठिकाना है.. तो हो सकता है कि येति पहाड़ के किसी गुफा में रहता हो .. या फिर येति बर्फ में छिपने माहिर हो .. तभी तो थोड़ी देर दिखने के बाद वो गायब हो जाता है ... अब तक जिसने भी हिममानव को देखा .. सभी का दावा है कि उसका आकार काफी बड़ा है .. जो किसी दावन की तरह दिखता है .. लेकिन जहां भी हिममानव देखा गया है .. उसमें ये कहा गया कि हिममानव इंसान की तरह दो पैरो पर चलता है.. इसके साथ ही शरीर पर काले भूरे बाल होने की बात सामने आई है .. ऐसे में हो सकता है कि हिममानव इंसान का पूर्वज हो .. जो इंसान के विकास की कड़ी हो.. और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दुर्गम बर्फिले में छिप कर रहता हो .. और इंसान के सामने नहीं आना चाहता हो .. इसलिए आज तक हिममानव का इंसान से आमना सामना नहीं हो पाया है .. हो सकता है हजारों साल से बर्फ में रहने को आदी हो चुके हिमामानव इंसान को दुश्मन समझता हो .. इस लिए जब हिममानव और इंसान की नजरें मिलती है .. छिपने में माहिर ये प्राणी गायब हो जाता है .. लेकिन ये तमाम तरह के कयास है .. और जब तक इंसान और हिममानव का आमना सामना नहीं हो जाता है ..या फिर हिममानव का ठिकाना ढुढ नहीं लिया जाता है .. हिममानव यानि येति रहस्यमयी प्राणी बना रहेगा ..

Wednesday, September 1, 2010

गुलजार

गुलजार एक ऐसा नाम, जो लफ्ज़ को बुनते हैं, तो दिल की तह तक पहुंच जाते है... गुलजार लफ्ज़ को हांकते है और उनके इशारे पर लफ्ज चल पड़ते हैं.. यहां तक कि गुमनाम और अनसुने शब्दों को जब वो छूते हैं.. तो वो भी बोलने लगते हैं.. गुलजार साहब का गाना चपा चपा चरखा चले ... को ही सुन लें... गुलजार साहब की अपनी जुबां है .. लेकिन समझते सभी है…जो समझते नहीं वो महसूस कर लेते हैं... इनकी लेखनी से निकला लब्जों का पिटारा भी इनका कहा मानते हैं.. इनके इशारें पर चलते हैं ..और लोंगों के दिलों में जाकर बैठ जाते है ... गुजलार साहब की जुबां का फैलाव असम से लेकर राजस्थान तक है जब वो छैंय्या छैंय्या कहते है .. तो लोग उनके बोल पर छैंय्या छैंय्या करने लगते है ….चल छैंय्या छैंय्या गीत सुन लें .. और जब फिजाओं में उनके बोल सुणियों जी बाबुला म्हारियो गूंजता है .. तो रेगिस्तान की महक लोगों के दिल में उतर आता है … सुणियो जी अरज म्हारियो बाबुला म्हार गाना सुनें.. गुलजार साहब हिन्दुस्तानी तहजीब का नुमांइन्दा सा लगते हैं … जिन्होने अपनी ज़िन्दगी को कतरों में जिया है .. और उन कतरों से घड़ा भरकर अपनी प्यास बुझाई है.. गुलजार साहब जब मजे में होते हैं... तो उनके शब्द भेजे में गोली भी मार देते हैं .गोली मार भेजे में गाना सुनें .. गुलजार साहब हर बार कुछ नया ढूंढ कर लाते है … .इनका इश्क भी सतरंगी है...जो इश्क को दायरे को फैला देता है . .. माशूक को हर रंग में सराबोर करने के लिए .. सतरंगी रे गाना सुन लें... वाकई गुलजार साहब बेमिशाल शख्शियत हैं .. जो .. हाथों पर धूप मला करते है.. .हवाओं पर पैगाम लिखा करते हैं....

रहस्यमयी बरमूडा ट्रायएंगल

बरमूडा त्रिकोण का रहस्य




अथाह समुद्र में रहस्य .. ये एक ऐसा त्रिकोण जो लील लेता है जहाज -विमान.. इस काल त्रिकोण के आगोश में सब कुछ समा जाता है.. ये अटलांटिक महासागर का एक ऐसा हिस्सा .. जिसकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा सका है.. ये है अटलांटिक महासागर के पूर्वी-पश्चिम में स्थित बरमूडा त्रिकोण.. समंदर में ये रहस्यमयी बारमूडा त्रिकोण.. मयामी.. फ्लोरिडा और सेन जुआनस से मिलकर बनता है.. इस इलाके में अब तक अनगिनत समुद्री जहाज और हवाई जहाज आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गए हैं.. और लाख कोशिशों के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका है. कुछ लोग इसे किसी परालौकिक शक्ति की करामात मानते हैं.. बारमूडा त्रिकोण कितना रहस्यमयी है.. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है .. कि इस पर कई किताब और लेख लिखे गए है .. तमाम तरह के शोध भी हुए लेकिन तमाम शोध और जांच -पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया...उन्हें आसमान निगल गया या समुद्र लील गया...दुर्घटना की स्थिति में भी मलबा तो मिलता...लेकिन जहाजों और विमानों का मलबा तक नहीं मिला .. इसलिए बारमूडा ट्रायएंगल आज भी है दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य..

बारमूडा ट्रायएंगल हादसा

बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है .. जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया... सबसे पहले 1872 में जहाज द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ.. जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया.. लेकिन बारमूडा ट्रायएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया.. जब 16 सितंबर 1950 को अखबार में इसपर लेख छपा ... और फिर इसके दो साल बाद फैट पत्रिका ने ..सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर.. नाम से लेख प्रकाशित किया.. इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पांच टीबीएम बमवर्षक फ्लाइट 19 विमानों ... के लापता होने का जिक्र किया गया .. फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफी गंभीरता से लिया गया .. इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि... हमें नहीं पता हम कहां हैं.. पानी हरा है .. और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है .. जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए.. यह पहला आर्टिकल था .. जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया.. वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज के लापता होने का सिलसिला जारी रहा .. बरमूडा त्रिकोण में हुए हादसे की बात करें तो ...1950 में अमेरिकी जहाज एसएस सैंड्रा यहां से गुजरा लेकिन कहां गया कुछ पता नहीं चला .. 1952 में ब्रिटिश जहाज अटलांटिक में विलीन हो गया... 33 लोग मारे गये .. लेकिन किसी के शव तक नहीं मिले.. 1962 में अमेरिकी सेना का केबी-50 टैंकर प्लेन बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से गुजरते वक्त अचानक लापता हुआ.. 1972 में जर्मनी का एक जहाज त्रिकोण में घुसते ही डूब गया.. इस जहाज का भार 20 हजार टन था.. 1997 में भी जर्मनी का विमान बरमूडा त्रिकोण में घुसते ही कहां गया.. कुछ पता नहीं चल पाया .. इस तरह कई विमान और जहाज अचानक बरमूडा ट्रायएंगल में गायब हुआ है ...बावजूद इसके आज भी इस दानवी त्रिकोण का रहस्य बरकार है ..

बरमूडा त्रिकोण और परग्रही


अटलांटिक महासागर के बरमूडा त्रिकोण को डेविल्स ट्रायएंगल यानी शैतान त्रिकोण के नाम भी जाना जाता है ... इस काल त्रिकोण से अब तक कई जहाज और विमान गायब हुए है लेकिन किसी का भी कुछ पता नहीं चल पाया ... यहां इलेक्ट्रानिक फॉग होने की बात भी सामने आई ... जिसमें फंस कर जहाज और विमान लापता हो जाते हैं.. लेकिन बरमूडा में इलेक्ट्रानिक फॉग किस तरह बनता है.. इसके बारे में जानकारी नहीं हैं .. इसलिए इस रहस्मयी त्रिकोण को परग्रही शक्तितियों से भी जोड़ कर देखा जाता है .. इस त्रिकोण के पास सबसे ज्यादा यूएफओ दिखने की बात सामने आई है.. इस लिए हो सकता है कि बरमूडा त्रिकोण दूसरे ग्रह के प्राणियों का रिसर्च स्टेशन हो ... इसलिए परग्रही शक्तियां जहाजों और विमानों को गायब करते हों .. और फिर उस पर रिसर्च करते हों .. दुनिया भर में यूएफओ देखने की बात सामने आती ही रहती है ..ऐसे में बरमूडा त्रिकोण से गायब होने वाले विमान और जहाज में परग्रही शक्तियों का हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता है .. लेकिन बरमूडा त्रिकोण के रहस्य में परग्रही शक्तियों का ही हाथ है.. इस पर बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है .. क्योंकि इसका ठोस कोई प्रमाण नहीं है .. इस लिए बरमूडा त्रिकोण आज भी है रहस्यमयी...

हक़ीक़त पर रिसर्च

बारमूडा ट्राएंगल के रहस्य से परदा हटाने के लिए कई शोध हुए ... इस मामले में एरिजोना स्टेट विश्वविद्यालय का रिसर्च .. द बरमूडा ट्रायंगल मिस्ट्री- साल्व्ड.. के लेखक लारेंस डेविड कुशे ने काफी शोध किया जिसमें उनका नतीजा बाकी शोध से अलग था.. उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से विमानों के गायब होने की बात को गलत करार दिया... कुशे ने लिखा कि विमान प्राकृतिक आपदाओं के चलते दुर्घटनाग्रस्त हुए.. लेकिन इस बात को सभी शोधकर्ताओं ने नजरअंदाज कर दिया.. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक शोध से पता चला है कि इस समुद्री क्षेत्र के बड़े हिस्से में मिथेन हाईड्राइड की बहुलता है.. इससे उठने वाले बुलबुले भी किसी जहाज के अचानक डूबने का कारण बन सकते हैं.. इस सिलसिले में अमेरिकी भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग यानी यूएसजीएस ने एक श्वेतपत्र भी जारी किया था.. यह बात और है कि यूएसजीएस के रहस्योद्घाभटन के कुछ दिनों बाद समुद्री जल में से गैस के बुलबुले निकलने के प्रमाण नहीं मिले.. वहीं कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बरमूडा टायएंगल के आसमान में बादलों के बीच तेज आवाज के बीच बिजलियां कड़कड़ते हुए के हुए देखने बात कही.. जिससे वहां इलेक्ट्रोमेगनेटिक फिल्ड बनता है... और फिर बादल और समंदर के बीच बबंडर उठता है.... जिसे इलेक्ट्रोनिक फॉग कहा गया .. लेकिन ये कैसे होता है इससे सभी अनजान हैं ... इसके अलावा बरमूडा ट्रायएंगल में अत्यधिक चुंबकीय क्षेत्र होने की बात कही गई .. जिसकी वजह से जहाजों में लगे उपकरण यहां काम करना बंद कर देते हैं.. और जहाज रास्ता भटक कर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.. यानी यहां भौतिक के कुछ नियम बदल जाते है ... लेकिन तमाम रिसर्च के बाद बरमूडा त्रिकोण के रहस्य के बारे में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया.. और ये दानवी त्रिकोण आज भी अनसुलझी पहेली है ..

बरमूड त्रिकोण व्यस्त समुद्री मार्ग


रहस्यमयी बरमूडा ट्राएंगल के एरिया को लेकर रिसर्च किया गया .. बारमूडा पर पर रिसर्च कर चुके कुछ वैज्ञानिको ने इसका एरिया .. फ्लोरिडा.. बहमास और पूरा केरेबियन द्वीप के साथ महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बताया .. तो कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है.. यानी रिसर्च के बाद बारमूडा के एरिया को लेकर अलग अलग राय दिए गए ..समंदर में ये त्रिकोण भले ही खतरनाक रहे है .. लेकिन ऐसा नहीं है कि बारमूडा त्रिकोण से होकर कोई जहाज नहीं गुजरता है .. इस क्षेत्र में हवाई और समुद्री यातायात भी बहुतायत में रहता है.. ये समुद्री इलाका दुनिया की व्यस्तम समुद्री यातायात वाले जलमार्ग के रूप में की जाती है.. यहां से अमेरिका.. यूरोप और केरेबियन द्वीपों के लिए रोजाना कई जहाज निकलते हैं.. यही नहीं.. फ्लोरिडा.. केरेबियन द्वीपों और दक्षिण अमेरिका की तरफ जाने वाले हवाई जहाज भी यहीं से गुजरते हैं.. यही वजह है कि कुछ लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि इतने यातायात के बावजूद कोई जहाज अचानक से गायब हो जाए.. या फिर ऐसे में कोई दुर्घटना जाए .. तो किसी को कैसे पता नहीं चल पाएगा .. लेकिन हकीकत तो यही है कि इस क्षेत्र से गायब हुए जहाज और विमान का अब कुछ पता नहीं चल पाया है ..