हर तमन्ना.. . हर ख्वाहिस ... को दिल मे संजोये हुए ....जिंदगी के सफर में बढ़ते रहें...
Thursday, June 28, 2012
मैं भी कैसा पागल हूं
मैं भी कैसा पागल हूं
कतरे को इक दरिया समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
हर सपने को सच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
तन पर तो उजले कपड़े थे
पर जिनके मन काले थे
उन लोगों को अच्छा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
मेरा फन तो बाजारों में...
बस मिट्टी के मोल बिका
खुद को इतना सस्ता समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
बीच दिलों के वो दूरी थी
तय करना आसान न था
आंखों को इक रस्ता समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
ख्वाबों को इक बच्चा समझा
मैं भी कैसा पागल हूं
हवा मैं बन जाऊं
काश
मैं हवा बन जाऊं
उड़ता
रहूं गगन में
मचलता
रहूं ... पेड़ों की झुड़मूठ से
जिधर
मन चाहा ... बहता रहूं
ना
कोई बंदिश ... ना कोई रास्ता
कभी
दोपहर की कड़ी धूप में
शीतल
झोंका बन जाऊं
कभी
अटखेलिया करूं
बादल
के साथ...
तो
कभी झूम - झूम बहूं ... पुरबैया बयार बन कर
तो
कभी चुपके से ...
बच्चों
के साथ हमजोली बन जाऊं
काश
...
काश
..
ऐसा
होता ..
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